मंगलवार, 29 नवंबर 2011

वसंत के रंग


वसंत के रंग

वसंत में
लताओं 
पेड़ - पौधों के पास
कितने रंग हैं !
उधर उस नै नवेली के
पास भी कितने रंग हैं 
उसका परिधान सुर्ख है
आभूषण सुनहरी 
गौरवर्ण 
काले केश 
मेहँदी रंगे हाथ 
और उसकी आँखों में तैरते 
सपनों के रंगों का तो 
कहना ही क्या ..

शनिवार, 30 अक्तूबर 2010

"धंवर पछै सूरज" री कवितावां

( चयन : नीरज दइया)


कुदरत री पड़
मौकळै मेह पछै
दूर आभै में
ऊंट-घोड़ियै-सा
ऊभा बादळ
जाणै टग्योड़ी होवै-

पाबू जी री पड़
अर आगै खड़िया
ऊंचा-ऊंचा दरखत
जाणै- भोपा-भोपी
उण नै बांचै ।
***

लुगायां
इत्ती भाजो-भाज में
याद राखल्यै बै
गीत

जमानै रो इत्तो विस
पीर ई
बै उबार ल्यै
कंठा में
इत्तो मिठास
सीधी-सादी लुगायां ।
***

सौरम री बात
बात-बेसक
रोटी री सौरम री करो
पण पैली-पैली बिरखा री
उण सौरम नै क्यूं भूलो
जकी सूं
आस जागै
रोटी री ।
***

कुदरत रै आगै
पाड़ोसी बगा देवै
गळी में थोड़ो-घणो पाणी
तो आपां
मरण नै त्यार हो जावां

पण मेह रै पाणी नै
जूतियां खोल
लांघ ज्यावां ।
***



जुग धरम
बातां करो हो
जुग धरम री

पण कद हो
साबतो सतजुग ?
अर अब कठै है ?
सौ पीसा कळजुग

झूठ-सांच री लड़ाई तो
धुर सूं चालती आई है
अर चालती ई रैवैली ।
***

सग्गा
बै कैवण में
सग्गा तो अवस कहिजै
पण जाबक ई नीं समझै
सग्गै तो संकट !

छुछक, भात,
ओढावणी अर दायजो
लेंवती बेळा
कदै ई नीं सोचै
कै सग्गो
कळीज तो नीं गयो
करज रै कादै !
***

धंवर पछै सूरज
आखै सियाळै
धंवर ई धंवर

जी दोरौ हुयो घणो
पण
इत्तो सतोख ई हुयो
कै तरसणो नीं पड़ियो
तावड़ै बैठण सारू ।

दस दिन री
धंवर पछै
आज थे निकळिया
तो लाग्यो-
बसंत
आयग्यो है ।
***
(राजस्थानी कविता संग्रह "धंवर पछै सूरज" सूं)